इक लड़की चुस्त चाल चली चलती है ,
निश्चिन्त भाव से , थोड़ी दूर है कार्यालय ,
बंधन टूट रहे समाज के , अच्छा है !!
अफसर बन जीना , स्वतंत्र होना , अधिकार है उसका ,
शर्माना छूट गया , अच्छा है ,
घबराना छूट गया , अच्छा है ,
जेब में पैसे होना , अच्छा है ,
मैं दर्द नहीं चाहती , अच्छा है ,
माँ बन बंधना नहीं चाहती , अच्छा है ,
घूँघट छूट चुका पहले ही ,
अब चुनरी छूटी , अच्छा है ,
शादी होगी सिर्फ स्वयंवर , अच्छा है ,
कपड़े होंगे मर्ज़ी के , अच्छा है ,
सास ससुर का रोभ न होगा , अच्छा है ,
व्यापार करूंगी बड़ा अच्छा है ,
जग मुट्ठी में होगा अच्छा है ,
पर इस अछे होने में खतरे कितने ?
इस चक्कर में घर टूटेंगे कितने ?
और क्या हम हैं अनुशाषित इतने ?
ये प्रश्नचिन्ह हटेंगे कितने ?
और बच्चियां सुरक्षित होंगी कब और कितनी ?
कोई न जाने , हालांकि मेरी भी इक बच्ची है !!